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JAL JULNI EKADASHI
भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी नाम से जाना जाता है. इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है और इसका पर्व के रूप में अत्यधिक महत्त्व है | यह पर्व राजसमंद जिले की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है | राजस्थान के राजसमंद जिले के प्रसिद्ध चारभुजाजी धाम मंदिर में जलझूलनी एकादशी के मेले का आयोजन किया जाता है । मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु ठाकुरजी के दर्शन करेगे। इस दौरान मंदिर मे....
भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी नाम से जाना जाता है. इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है और इसका पर्व के रूप में अत्यधिक महत्त्व है | यह पर्व राजसमंद जिले की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है | राजस्थान के राजसमंद जिले के प्रसिद्ध चारभुजाजी धाम मंदिर में जलझूलनी एकादशी के मेले का आयोजन किया जाता है । मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु ठाकुरजी के दर्शन करेगे। इस दौरान मंदिर में हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लालकी और छोगाला छेल के जयकारे सुनाई देते है । इस मेले को मेवाड के प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है। दोपहर 12:00 बजे निज मंदिर से चारभुजा नाथ जी के बालस्वरूप को सोने की पालकी में विराजित किया जाता है । पुजारी परिवार के सदस्य के हाथों में सोने और चांदी की छड़ें लेकर और नृत्य करते हुए मुख्य मंदिर से निकलती है इस दौरान नगर भ्रमण करते हुए डेढ़ किलोमीटर दूर दूध तलाई पहुंचते है । मार्ग में चारभुजा जी के भक्त लाल गुलाल उड़ा कर ठाकुर जी के दर्शन करते है । इस दौरान युवा अद्भुत करतब दिखाते है इसके बाद दूध तलाई में श्री चारभुजा नाथ जी के बाल स्वरूप को पुजारियो द्वारा पंचामृत स्नान कराकर दूध तलाई का पूरा चक्कर लगते है । दूध तलाई के पास पहाड़ियों और आसपास के गाँवों से लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते है । दूध तलाई पर कार्यक्रम होने के बाद ठाकुर जी के बाल स्वरूप को चांदी की पालकी में विराजित कर निज मंदिर के लिए प्रस्थान किया जाता है । इस दौरान नगर की सारी सड़कें गुलाल से लाल नजर आती है । पर्यटक भी इस पर्व में शामिल हो कर इस पर्व का आंनद लेते है एवं विदेशी पर्यटक भी झाकियो को देख कर रोमांचित हो जाते है | इस वर्ष दिनाक 14.09.2024 को तीन दिवसीय आयोजन किया जायेगा |
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भाद्रपद माह की शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी नाम से जाना जाता है. इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है और इसका पर्व के रूप में अत्यधिक महत्त्व है | यह पर्व राजसमंद जिले की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है | राजस्थान के राजसमंद जिले के प्रसिद्ध चारभुजाजी धाम मंदिर में जलझूलनी एकादशी के मेले का आयोजन किया जाता है । मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु ठाकुरजी के दर्शन करेगे। इस दौरान मंदिर में हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लालकी और छोगाला छेल के जयकारे सुनाई देते है । इस मेले को मेवाड के प्रसिद्ध मेलों में से एक माना जाता है। दोपहर 12:00 बजे निज मंदिर से चारभुजा नाथ जी के बालस्वरूप को सोने की पालकी में विराजित किया जाता है । पुजारी परिवार के सदस्य के हाथों में सोने और चांदी की छड़ें लेकर और नृत्य करते हुए मुख्य मंदिर से निकलती है इस दौरान नगर भ्रमण करते हुए डेढ़ किलोमीटर दूर दूध तलाई पहुंचते है । मार्ग में चारभुजा जी के भक्त लाल गुलाल उड़ा कर ठाकुर जी के दर्शन करते है । इस दौरान युवा अद्भुत करतब दिखाते है इसके बाद दूध तलाई में श्री चारभुजा नाथ जी के बाल स्वरूप को पुजारियो द्वारा पंचामृत स्नान कराकर दूध तलाई का पूरा चक्कर लगते है । दूध तलाई के पास पहाड़ियों और आसपास के गाँवों से लाखो की संख्या में श्रद्धालु आते है । दूध तलाई पर कार्यक्रम होने के बाद ठाकुर जी के बाल स्वरूप को चांदी की पालकी में विराजित कर निज मंदिर के लिए प्रस्थान किया जाता है । इस दौरान नगर की सारी सड़कें गुलाल से लाल नजर आती है । पर्यटक भी इस पर्व में शामिल हो कर इस पर्व का आंनद लेते है एवं विदेशी पर्यटक भी झाकियो को देख कर रोमांचित हो जाते है | इस वर्ष दिनाक 14.09.2024 को तीन दिवसीय आयोजन किया जायेगा |
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