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राष्ट्रीय दशहरा मेला 2024 समापन सांस्कृतिक कार्यक्रम 28.102024
131वा राष्ट्रीय दशहरा कार्यक्रम का समापन दिनाक 28.10.2024 को पर्यटन विभाग कोटा द्वारा प्रायोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ समापन किया गया जिसमे समापन समारोह श्रीराधा-कृष्ण की रास लीलाओं का अनुपम गवाह बना। भारतीय कला संस्थान डीग के कलाकारों की अप्रतिम प्रस्तुति ने पूरे मेला परिसर को ‘महारास’ के रंग में रंग दिया। दशहरा मैदान में बृज जीवंत हो उठा। भक्ति और प्रेम से सराबोर महाराज ने भक्तों को बृज चौर....
131वा राष्ट्रीय दशहरा कार्यक्रम का समापन दिनाक 28.10.2024 को पर्यटन विभाग कोटा द्वारा प्रायोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ समापन किया गया जिसमे समापन समारोह श्रीराधा-कृष्ण की रास लीलाओं का अनुपम गवाह बना। भारतीय कला संस्थान डीग के कलाकारों की अप्रतिम प्रस्तुति ने पूरे मेला परिसर को ‘महारास’ के रंग में रंग दिया। दशहरा मैदान में बृज जीवंत हो उठा। भक्ति और प्रेम से सराबोर महाराज ने भक्तों को बृज चौरासी की ऐसी अद्भुत यात्रा करवाई कि हर कोई राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम में डूब गया। आत्मा को स्पर्श करने वाला अनुभव देने वाले महारास के जरिए श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बखूबी प्रकट किया। श्रीकृष्ण की लीलाओं के इस अद्भुत प्रदर्शन ने उनके रास के विविध स्वरूपों मयूर महारास, डांडिया महारास और होली महारास मनोहारी रंग में रंग दिया। होली महारास में कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों के साथ फूलों की होली खेल प्रेम की अद्भुत छटा बिखेर दी। कृष्ण की 16 कलाओं की झलक मयूर महाराज में देखने को मिली। वहीं डांडिया महारास दर्शकों को उनके अद्वितीय व्यक्तित्व और शक्ति की ओर ले गया।श्रीराधा कृष्ण लीला का जीवंत प्रदर्शन देख हर कोई उनके प्रेम और भक्ति में डूब गया। इस दौरान चला चलिए जहां बसे बृजराज... के जरिए मयूर महारास ने तो जैसे समय के प्रवाह को रोक कर सभी को उस दिव्य क्षण का साक्षी बना दिया। रास रचावे नंदलाला... आज बिरज में होरी रे रसिया... बृजनार बन आयो कन्हैया... सरीखे भजनों पर श्री कृष्ण और राधे रानी के नृत्य ने हर किसी को भाव-विभोर कर दिया।विजयश्री रंगमंच पर जब तक महारास का दिव्य आयोजन चलता रहा दर्शक जहां के तहां जमे रहे। अपलक किशोरी श्यामा जूं और बिहारीजी के पावन लीलाओं में ही डूबे रहे। करीब एक घंटे तक चले महारास ने महसूस ही नहीं होने दिया कि दर्शक कोटा में बैठे हैं या बृज चौरासी की परिक्रमा में डूबे हैं।राजस्थानी लोकगीतों से सजी सुरीली शाम131वां राष्ट्रीय दशहरा मेला की आखिरी सांझ राजस्थानी लोक रंगों में ऐसी रंगी कि देशी ही नहीं विदेशी पावणे भी सतरंगी रंग में रंग गए। दशहरा मेले के समापन अवसर पर राजस्थानी लोक गायक जस्सू खान मांगणियार और उनके साथियों की सुरीली गायकी से महक उठी।जस्सू ने स्वागत गीत ’’केसरिया बालम पधारो हारे देश...,कदी आओ नी रसीले हारे देश..के साथ सुरों का ऐसा रंग बिखेरा कि हर कोई निहाल हो गया। इसके बाद उन्होंने घूमर तो कभी बन्ना जीमो तो हलुआ है बादाम रो सा की तान छेड़ सभी को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने आफरीन-आफरीन..,हुस्न ए जाना की तारीफ मुमकिन नहीं...सुनाया तो विजयश्री रंगमंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। जस्सू खान झिर्मर बरसे मेव..., निबुड़ा..., ‘‘दमा दम मस्तकलंदर... जैसे गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। उन्होंने जैसे ही छाप तिलक सब छीनी तैसे नैना मिलाय के’’ सुनाए हर कोई झूम उठा। दमादम मस्त कलंदर पर तो विदेशी पाँवणे भी खूब थिरके। आखिर में जब ’’राम आएंगे तो अंगना सजाऊंगी’’ सुना पूरा माहौल ही भक्ति के रंग में रंग डाला। जोगिंदर सिंह की खड़ताल और इकतारे की जुगलबंदी ने भी सबका खूब मन मोहा। जस्सू खान का साथ गायन में सत्तार सिंह और स्वरुप सिंह ने दिया। वहीं संगतकारों में ढोलक पर निहाल खान ने, हारमोनियम पर स्वरुप खान ने, ढफली पर रहीश खान ने साथ दिया।
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